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B.Ed - 1 Year 

CODE : 005.1

PAPER -5 : PEDAGOGY OF SUBJECT AREA  हिन्दी का शिक्षण शास्त्र (प्रथम वर्ष)

S.No UNIT (TOPIC) BY
 1 UNIT -1 भाषा का अर्थ, उत्पत्ति व प्रकृति
c अमूमन भाषा को संप्रेषण का माध्यम कहकर परिभाषित किया जाता है लेकिन यह भाषा की बहुत ही सीमित परिकल्पना है। यह इकाई यह समझने में मदद करेगी कि भाषा क्या है और उसकी परिभाषा में क्या-क्या तत्व शामिल होंगे।विद्यार्थी-शिक्षक यह भी समझ पाएंगे कि भाषा की मूल प्रकृति वस्कतुओं, संबंधों, भावनाओं के लिए वाचिक प्रतीक गढ़ना है। साथ ही भाषा एक विषय के साथ-साथ शिक्षण का माध्यम होने के नाते समझ और ज्ञान का माध्यम भी है। इनको सुनने, बोलने, पढ़ने, लिखने के साथ सोचने, विश्लेषण और तर्क करने सहित अन्य कई कौशलों के समूह के रूप में प्रस्तुत करना उपयोगी हो सकेगा।
1 भाषा की आवश्यकता क्यों?
2 भाषा क्या है? (प्रतीकों की वाचिक व्यवस्था के रूप में भाषा)
3 भाषा की विशेषताएं - उत्पादन क्षमता, विस्थापन, मनमानापन, ध्वनियों को जोड़कर अर्थपूर्ण कथन बनाना, सामाजिक है, अर्जित की जाती है, नियमबद्ध होती है, उसकी प्रकृति एवं संरचना होती है।
4 भाषा के कार्य
 
2 UNIT -2 इकाई 2 : हिन्दी भाषा की संरचना
  प्रत्येक भाषा अपने आप में बहुभाषिक होती है और वह विभिन्न स्तरों (ध्वनि, शब्द, वाक्य, संवाद) पर नियमबद्ध होताहै। भाषा की ध्वनि, शब्द, वाक्य व संवाद के धरातल पर संरचना कैसी है और व्याकरण के दृष्टिकोण से स्वरूप कैसाहै यह समझने का प्रयास इस इकाई में किया जाएगा।
  भाषा की नियमबद्ध व्यवस्था - ध्वनि, शब्द, वाक्य व संवाद के स्तर पर
हिन्दी, अंग्रेजी व अन्य स्थानीय भाषाओं के उदाहरणों से नियमबद्ध व्यवस्था को समझना।
स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल व्याकरणीय तत्वों की नियमबद्धता को समझना व उनका शिक्षण
 
3 UNIT -3 इकाई 3: भाषा अर्जन, सीखना व विकास
  हर बच्चा भाषा का एक सार्वभौमिक स्वरूप लेकर पैदा होता है। बच्चों में भाषा सीखने की जन्मजात क्षमता होती है और वे बिना किसी औपचारिक शिक्षण के स्वाभाविक रूप से अपने आसपास की भाषा सीख लेते हैं। उन्हें बस जरूरत होती है एक अनुकूल एवं उपयुक्त भाषाई माहौल की। यदि हम भाषा अर्जन की प्रक्रिया पर ध्यान दें तो उसके माध्यम से कक्षा
में भाषा-शिक्षण के बारे में बहुत कुछ सीखा जा सकता है।
1 भाषा अर्जन का तात्पर्य
2 सीखने व अर्जन में अंतर
3 इंसान में भाषा अर्जन की जैविक अनुकूलता
4 भाषा अर्जन में भाषाई परिवेश की महत्ता
5 भाषा सीखने में अर्जित भाषा की भूमिका
6 विविध संदर्भो व प्रयोजनों में भाषा के उपयोग के उदाहरणों से भाषा विकास को समझन
संदर्भ में है।)
 
4 UNIT -4 हिन्दी के विविध रूप
1 हम जानते हैं कि हिन्दी के कई रूप हम उपयोग में लेते हैं। हर हिन्दी भाषा के हिन्दी के स्वरूप में पर्याप्त अंतर देखने को
मिलता है। हमारी बातचीत व व्यवहार की हिन्दी तथा पाठ्यपुस्तकों में शामिल हिन्दी में भी काफी अंतर होता है। सामान्यतः पाठ्यपुस्तकों की परिष्कृत व मानक हिन्दी की ओर हमारा आग्रह होता है और हिन्दी के विविध स्वरूपों को हम नकार देते हैं। संविधान में हिन्दी के संबंध में प्रावधान धारा 343 व अनुसूची 8 में किए गए हैं। यह समझना जरूरी है कि क्या दोनों स्थानों पर एक ही हिन्दी है या अलग-अलग?
2 संविधान में हिन्दी (धारा 343, अनुसूची 8)
3 व्यवहार में उच्चारण, शब्द, वर्तनी के स्तर पर हिन्दी के विविध रूप (उदाहरणों द्वारा )- मानक भाषा, भाषा एवं बोली में अंतर।
4 पाठ्यपुस्तकों में शामिल हिन्दी के विविध रूपों को जानना।
 
5 UNIT -5 हिन्दी की पाठ्यचर्या, पाठ्यक्रम व पाठ्यसामग्री
  एक शिक्षक का कार्य केवल दिए गए पाठ्यक्रम व पाठ्यसामग्री को ऐसा ही कक्षा में जाकर लागू नहीं कर देना है बल्कि उसे स्वयं निरंतर सामग्री का विश्लेषण व निर्माण करते रहना होता है साथ ही पाठ्यचर्या, पाठ्यक्रम व पाठ्यसामग्री के आपसी अंर्तसंबंध को समझते हुए उनका क्रियान्वयन करना होता है। शिक्षक को यह भी जानना चाहिए कि भाषा शिक्षण में पाठ्यपुस्तक केवल एक पाठ्यसामग्री है और भाषा सीखने में विविधतापूर्ण पाठ्यसामग्री की आवश्यकता होती है।
1 हिन्दी की पाठ्यचर्या का अर्थ व विश्लेषण
2 हिन्दी के पाठ्यक्रम का अर्थ व विश्लेषण
3 हिन्दी की पाठ्यसामग्री का अर्थ व विश्लेषण
4 उपर्युक्त तीनों के आपसी अंर्तसंबंध, क्रमबद्धता व क्रियान्वयन
5 पाठ्यचर्या के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए भाषा की पाठ्यसामग्री का निर्माण व उपयोग
 

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